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पीथमपुर में अवैध कॉलोनियों का ‘सिंडिकेट राज’ – नगरपालिका बनी दलालों की एजेंसी, करोड़ों का खुला खेल जारी

सरकारी खजाना लुटा, जनता लूटी, अपराधी सत्ता के मंच पर

जीवन खारीवाल, पीथमपुर। पीथमपुर नगर पालिका परिषद अब शासन की इकाई नहीं, बल्कि अवैध कॉलोनाइजरों की सहूलियत की एजेंसी बन चुकी है। जिन कॉलोनाइजरों के खिलाफ खुद नगर पालिका ने एफआईआर दर्ज करवाई, उन्हीं के अवैध कब्जों पर अब सड़क, नाली, बिजली और पानी जैसी सुविधाएं सरकारी पैसों से बनवाई जा रही हैं।

सेक्टर 1 से 3 तक की जमीनों पर बिना डायवर्जन, बिना टीएनसीपी अनुमति और बिना रेरा रजिस्ट्रेशन के जो कॉलोनियां उग आई हैं, वे न तो वैधानिक हैं और न ही नियमानुसार विकसित। लेकिन वहां नगरपालिका करोड़ों रुपये खर्च कर विकास कार्य करवा रही है, जैसे इन अवैध कॉलोनियों को वैधता का वरदान देना ही परिषद की पहली प्राथमिकता हो।

नगरपालिका अध्यक्ष सेवंती बाई पटेल और उनके पति सुरेश पटेल की भूमिका इस पूरे मामले में सबसे संदिग्ध और खतरनाक है। सुरेश पटेल खुद को ‘अध्यक्ष प्रतिनिधि’ घोषित कर, हर मंच, हर बैठक और हर फाइल पर नजर रखते हैं। जबकि नियमानुसार इस पद का कोई अस्तित्व ही नहीं है। फिर भी फाइलों पर उनकी परछाई रहती है और मंचों पर उनकी उपस्थिति टिकी रहती है।

क्या नगरपालिका कार्यालय अब पारिवारिक दुकान बन चुका है?
जिस तरह से सुरेश पटेल का हस्तक्षेप है, उससे ये स्पष्ट होता है कि पूरी परिषद उनके इशारों पर चल रही है।

विकास की आड़ में वैधता की लूट – यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, अपराध है

विकास कार्यों के नाम पर जिन कॉलोनियों में सड़क-नाली बन रही है, वे कॉलोनियां अब तक नगर पालिका को हैंडओवर भी नहीं की गई हैं। यानी न वहां की ज़िम्मेदारी नगरपालिका की है, न कोई वैधानिक अधिकार। इसके बावजूद वहां सरकारी धन की बौछार हो रही है।

इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि जिन लोगों पर एफआईआर दर्ज हो, उन्हीं को नगरपालिका फायदा पहुंचा रही है?

सिस्टम बिका हुआ है, विपक्ष गूंगा बना बैठा है

यह पूरा मामला सिर्फ सत्तापक्ष का नहीं। जब परिषद में कांग्रेस की बहुमत वाली परिषद और भाजपा के वरिष्ठ नेता एक जैसे चुप हैं, तो यह चुप्पी साज़िश की सहमति नहीं तो और क्या है?

पक्ष और विपक्ष दोनों ने अपनी आत्मा बेच दी है।
वरना करोड़ों के इस खुले खेल पर कोई तो सवाल उठाता।

कागजों में स्वीकृति – हर हस्ताक्षर पर गंधाता घोटाला

नगरपालिका की हर निर्माण प्रक्रिया सर्वे, प्रस्ताव, टेंडर और भुगतान से होकर गुजरती है। हर चरण पर नगरपालिका अध्यक्ष की मुहर लगती है। फिर अब यह कहना कि “हमें जानकारी नहीं थी”, सिर्फ नाटक और लीपापोती है।

हर विकास कार्य की फाइल अध्यक्ष की मेज से गुजरती है। हर भुगतान पर उनका अनुमोदन होता है। और यदि नहीं होता, तो बिना स्वीकृति करोड़ों खर्च कैसे हुए?

भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी, लोकायुक्त जांच में फटेगा भयानक सच

यदि यह मामला लोकायुक्त या EOW की जांच के दायरे में आया, तो पीथमपुर नगरपालिका का काला सच उजागर होगा। सिर्फ लिप्त अधिकारियों और नेताओं की गिरफ्तारी ही नहीं, बल्कि कई सालों की योजनाएं रद्द होंगी, विकास कार्यों के नाम पर की गई फर्जीबाड़ियों की परतें खुलेंगी, और जनता को ठगने वालों का असली चेहरा बेनकाब होगा।

सीएमओ की चौंकाने वाली टिप्पणी – क्या वे भी मजबूर या शामिल है, उन्होंने कहा “यदि अवैध कॉलोनियों में नगरपालिका ने विकास कार्य करवाए हैं तो यह मेरी जानकारी में नहीं है। जांच कराऊंगा।”

तो फिर सवाल ये है – अगर सीएमओ को नहीं पता, तो फाइलें किसने पास कीं? भुगतान किसने किया?

क्या अब यह मान लिया जाए कि पीथमपुर नगरपालिका में सत्ता की एक समानांतर सरकार काम कर रही है, जो फाइलों को नियमों से नहीं, रिश्तों से चलाती है?

अब वक्त है – पूरे सिंडिकेट पर कड़ी कार्रवाई का

इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच, एफआईआर, घोटाले में लिप्त अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की बर्खास्तगी, और करोड़ों के इस खेल में शामिल ठेकेदारों, कॉलोनाइजरों और नेताओं की संपत्ति ज़ब्ती ही एकमात्र रास्ता है। वरना आने वाले वक्त में यह ‘पीथमपुर मॉडल’ पूरे प्रदेश के लिए भ्रष्टाचार का प्रतीक बन जाएगा।

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