भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बार फिर उस नाम की चर्चा है जो विवादों से जुड़ते ही सुर्खियों में आ जाता हैं। भाजपा के वरिष्ठ मंत्री विजय शाह ने हाल ही में कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान के कारण खुद को चौतरफा घिरा पाया है। उन्होंने कर्नल सोफिया को ’आतंकियों की बहन’ कहकर संबोधित किया, जिससे सिर्फ विपक्ष ही नहीं, बल्कि उनकी अपनी पार्टी भाजपा के भीतर भी नाराजगी की लहर फैल गई है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी इस बयान पर नाराजगी जताई है और अब एक बार फिर उनकी मंत्री पद की कुर्सी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। विजय शाह का विवादों से नाता कोई नया नहीं है। यह पहला मौका नहीं है जब उन्होंने अपने शब्दों से भाजपा के लिए असहज परिस्थितियां पैदा की हों। सालों से राजनीति में सक्रिय रहने के बावजूद उनकी भाषा और आचरण पर नियंत्रण न होना, उन्हें बार-बार संकट में डालता आया है। कर्नल सोफिया को लेकर दिया गया यह बयान उस लापरवाही की ताजा मिसाल है, जिसके कारण भाजपा को सार्वजनिक रूप से सफाई देनी पड़ रही है और विपक्ष को हमला बोलने का नया हथियार मिल गया है।
मंत्री विजय शाह की गिनती भाजपा के अनुभवी नेताओं में होती है। हरसूद विधानसभा सीट से वे लगातार सात बार विधायक निर्वाचित हो चुके हैं और अब आठवीं बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। एक आदिवासी नेता के रूप में उनकी पहचान बनी हुई है और इसी आधार पर उन्हें गौर सरकार, शिवराज सिंह चौहान और वर्तमान मोहन सरकार में मंत्री पद सौंपा गया। वर्तमान में वे जनजातीय कार्य, सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन तथा भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभागों के मंत्री हैं। लेकिन इतना लंबा अनुभव भी उनके बयानों में संयम नहीं ला पाया।
साल 2020 में भी विजय शाह ने एक ऐसा विवाद खड़ा किया था जिसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हुई। मशहूर अभिनेत्री विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ की शूटिंग मध्यप्रदेश में चल रही थी। उस समय विजय शाह वन मंत्री थे। बताया गया कि मंत्रीजी विद्या बालन के साथ डिनर करना चाहते थे। जब यह ऑफर अभिनेत्री ने ठुकरा दिया, तो नाराज होकर मंत्री ने शूटिंग रुकवा दी। मामला मीडिया में आया तो सरकार को सफाई देनी पड़ी और बाद में शूटिंग फिर से शुरू हो पाई। यह प्रकरण महिला कलाकारों और स्वतंत्र कार्य संस्कृति को लेकर सरकार की छवि पर एक बड़ा सवाल बनकर उभरा। इसके बाद एक और घटना में विजय शाह ने सरकारी नियमों की अनदेखी करते हुए सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के प्रतिबंधित क्षेत्र में अपने दोस्तों के साथ चिकन पार्टी की। जंगल में आग जलाकर पार्टी का वीडियो जब वायरल हुआ, तो जनता और पर्यावरण कार्यकर्ताओं में आक्रोश फैल गया। सरकार ने जांच के आदेश तो दिए, लेकिन अंततः मामला रफा-दफा कर दिया गया। यह घटना पर्यावरण संरक्षण को लेकर सरकार की कथनी और करनी के बीच के अंतर को उजागर करती रही।
विजय शाह के राजनीतिक करियर में एक ऐसा किस्सा भी शामिल है जो उन्हें एक जुझारू नेता के रूप में सामने लाता है, लेकिन साथ ही प्रशासन से सीधे टकराव की झलक भी देता है। 1998 में चुनाव जीतने के बाद जब खंडवा में पुलिस हिरासत में एक ढोलक बजाने वाले युवक की मौत हुई, तो शाह ने इस घटना का विरोध करते हुए प्रदर्शन किया और एक थाना प्रभारी को थप्पड़ जड़ दिया। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने उन्हें बुरी तरह पीटा और उनका पैर फ्रैक्चर हो गया। यह घटना न सिर्फ सुर्खियों में रही, बल्कि शाह की राजनीति में टकराव के तेवर भी सामने आए। इससे पहले भी वे विवादों में रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान की सरकार के दौरान उन्होंने खुद मुख्यमंत्री की पत्नी पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी। नतीजतन, उन्हें मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। हालांकि, उनकी संगठन में पकड़ इतनी मजबूत रही कि चार महीने बाद ही उन्हें दोबारा कैबिनेट में जगह मिल गई। इससे स्पष्ट होता है कि भले ही वे कितने भी विवादों में घिरें, उनकी राजनीतिक ताकत में कभी खास कमी नहीं आई।
अगर विजय शाह के राजनीतिक सफर की बात करें तो उनका आरंभ छात्र राजनीति से हुआ। इंदौर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़कर उन्होंने कॉलेज चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाई। वर्ष 1990 में वे पहली बार मध्यप्रदेश विधानसभा में पहुंचे और तब से 1993, 1998, 2003, 2008, 2013, 2018 और 2023 में लगातार हरसूद से विधायक निर्वाचित होते रहे हैं। यह सिलसिला उनकी राजनीतिक क्षमता और जनाधार को तो दिखाता है, लेकिन उनके द्वारा बार-बार की जाने वाली बयानबाजियों ने पार्टी की साख पर प्रश्नचिह्न भी लगाए हैं।
अब एक बार फिर मंत्री विजय शाह अपने विवादित बयान के कारण संकट में हैं। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की नाराजगी के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें मंत्री पद से हटाया भी जा सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस बार क्या रुख अपनाती है। क्या उन्हें फिर से माफ कर आगे बढ़ा दिया जाएगा या इस बार पार्टी एक सख्त उदाहरण पेश करेगी। इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ है कि सार्वजनिक पदों पर बैठे नेताओं को शब्दों की मर्यादा और संवैधानिक दायित्व की समझ होना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि एक लापरवाह टिप्पणी न केवल व्यक्तिगत छवि को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि पार्टी और सरकार की साख पर भी गहरा प्रभाव डालती है। विजय शाह के ताजा विवाद ने न सिर्फ उनकी कुर्सी हिला दी है, बल्कि भाजपा की अंदरूनी राजनीतिक सतह को भी एक बार फिर हिला कर रख दिया है।
मुकदमा दर्ज, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की
जबलपुर हाईकोर्ट के निर्देश पर महू के मानुपर थाने में मंत्री विजय शाह के खिलाफ बीएनएस की धारा 152, 196(1)(ख), 197(1)(ग), के तहत केस दर्ज किया गया है। मानपुर के छापरिया में ही मंत्री शाह ने आपत्तिजनक बयान दिया था। इधर अपनी कुर्सी बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे शाह को कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिए और यह भी समझना चाहिए कि वे कैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब न केवल शाह का इस्तीफा तय है। बल्कि उनकी गिरफ्तारी भी संभव है। इधर इस मामले में पार्टी ने न तो मंत्री विजय शाह का बचाव किया और न ही विरोध किया। कल देर रात मुख्यमंत्री के बैंगलुरु से लौटने के बाद मुख्यमंत्री निवास पर भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा, हितानंद शर्मा की बैठक के बाद शाह को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। लेकिन शाह ने सुप्रीम कोर्ट की याचिका के फैसले का इंतजार करने को कहा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलने के बाद अब मंत्री इस्तीफे की पेशकश के करीब है।