- भारत में दाख़िला कैसे मिला, दस्तावेज़ कैसे बने, और पीथमपुर तक कैसे पहुंचे।
पीथमपुर। औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर से हाल ही में पकड़े गए 10 बांग्लादेशी नागरिकों को 29 जुलाई की रात को उनके देश में भेज दिया गया है। 24 जुलाई को बांग्लादेशी नागरिको का मेडिकल टेस्ट के बाद उन्हें भारी सुरक्षा के बीच बॉर्डर पर ले जाने की कार्रवाई शुरू की गई। पल पल की अपडेट धार एसपी पुलिस अधिकारियों से लेते रहे। दरअसल, औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में वर्षों से रह रहे और फैक्ट्रियों में काम कर रहे 10 रोहिंग्या मुसलमानों को हाल ही में प्रशासन ने हिरासत में लेकर बांग्लादेश भेज दिया। इन सभी की पहचान और दस्तावेजों की सघन जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि ये लोग अवैध तरीके से भारत में दाखिल हुए थे और फर्जी पहचान के जरिए यहां रह रहे थे। इनमें पुरुषों के साथ महिलाएं भी शामिल थीं। दस्तावेजों की जांच में जब इनके पास वैध पासपोर्ट, वीजा या अन्य पहचान पत्र नहीं मिले, तो इन्हें हिरासत में लेकर दूतावासों से पुष्टि कराई गई। अधिकांश दस्तावेज बांग्लादेश के विभिन्न जिलों से जारी पाए गए। इसके बाद 30 जुलाई को इन्हें बीएसएफ की निगरानी में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद बॉर्डर तक ले जाकर सुरक्षित सीमा पार कराया गया।
जांच में यह भी सामने आया कि इन सभी को बांग्लादेश से भारत तक लाने में दलालों ने भूमिका निभाई थी। किसी के पास पासपोर्ट नहीं था, न वीजा, न किसी प्रकार की अधिकृत प्रविष्टि की अनुमति। पीथमपुर में वे फैक्ट्रियों और निर्माण इकाइयों में मजदूरों के रूप में काम कर रहे थे और कई के पास भारतीय श्रमिक पंजीयन और फर्जी आधार कार्ड तक मौजूद थे। यह पूरे सिस्टम में जड़े जमाए बैठे फर्जी दस्तावेज नेटवर्क की ओर इशारा करता है।
पीथमपुर बगदून थाना क्षेत्र से भी तीन संदिग्धों को पकड़ा गया है, जिनकी जांच अभी चल रही है। दस्तावेजों की पुष्टि के बाद इन्हें भी निष्कासित किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्रालय की गाइडलाइन के अनुसार विदेशियों की पहचान और निष्कासन की यह प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से जारी रहेगी।
सवाल उठने भी शुरू
10 बांग्लादेशियों को उनके देश भेजे जाने के बाद एक ओर जहां प्रशासनिक कार्रवाई की सराहना हो रही है, वहीं दूसरी ओर कई गंभीर सवाल भी खड़े हो गए हैं। अब यह चर्चा तेज़ हो गई है कि आखिर इतने सालों तक ये विदेशी नागरिक यहां कैसे रह रहे थे। क्या ये सिर्फ बांग्लादेश से आए थे या रोहिंग्या मुसलमानों की भी घुसपैठ हुई थी?
सूत्रों के अनुसार, जिन लोगों को बांग्लादेश भेजा गया, वे कई वर्षों से यहां रह रहे थे। लेकिन इस बात की अब तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि वे भारत में किस बॉर्डर से दाखिल हुए और कैसे इंदौर होते हुए पीथमपुर पहुंचे? सुरक्षा एजेंसियों के पास ऐसी जानकारी नहीं होना या न लेना, खुद एक बड़ी चूक मानी जा रही है। पीथमपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्र में लगातार रहने और काम करने के लिए इन लोगों को दस्तावेज, पहचान, काम, रहने की जगह कैसे मिली — यह सवाल भी अब जांच का विषय बन गया है।
इसके अलावा कुछ प्रवासियों के पास भारतीय पहचान पत्र जैसे आधार कार्ड, राशन कार्ड और मजदूरी रजिस्ट्रेशन तक पाए गए हैं। आशंका जताई जा रही है कि इसमें स्थानीय दलालों, फर्जी दस्तावेज बनाने वालों और यहां तक कि कुछ ठेकेदारों की भी मिलीभगत हो सकती है।
जानकारी के अनुसार, यह मामला केवल बांग्लादेशियों तक सीमित नहीं है। बगदून थाना क्षेत्र में पकड़े गए रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या भी बढ़ सकती है। बगदून थाने में तीन रोहिंग्या मुसलमानों से पूछताछ जारी है। जिन्हें ने आज या कल में बांग्लादेश की बॉर्डर पर छोड़ा जाएगा। उनके दस्तावेजो सघन जांच चल रही है।
विशेष सूत्रों ने बताया कि रोहिंग्या समुदाय की युवतियों द्वारा शहरों में घरेलू नौकर, मसाज पार्लर, यहां तक कि देह व्यापार जैसे अवैध धंधों में लिप्त होने की सूचनाएं अन्य शहरों से पहले ही सामने आ चुकी हैं। ऐसे में स्थानीय स्तर पर भी इस एंगल की जांच जरूरी हो गई है।
इधर, करीब आठ दिन पहले तीन थानों की पुलिस टीम विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ) के साथ निर्वासित किए गए विदेशी नागरिकों को सीमा पार छोड़ने के लिए रवाना हुई थी। अधिकारियों के मुताबिक, किसी विदेशी नागरिक को देश से निकालने की कानूनी प्रक्रिया में कम से कम 30 दिन का समय लगता है। दस्तावेजों की पुष्टि, दूतावास संपर्क और सुरक्षित वापसी की व्यवस्था सुनिश्चित करना जटिल प्रक्रिया होती है।
और रोहिंग्या, पीथमपुर व अन्य क्षेत्रों में छिपे
अब पीथमपुर, इंदौर, धार सहित आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों में प्रशासन सतर्क हो गया है। जांच एजेंसियां यह मान रही हैं कि अभी भी कई विदेशी नागरिक, खासकर बांग्लादेशी और रोहिंग्या, पीथमपुर व अन्य क्षेत्रों में छिपे हुए हो सकते हैं। स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि प्रशासन को नियमित जांच अभियान चलाना चाहिए और जहां कहीं भी फर्जी पहचान या संदिग्ध लोग दिखें, वहां तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। कार्रवाई के बाद अब स्थानीय स्तर पर कई सवाल उठने लगे हैं। जिन बांग्लादेशियों को निर्वासित किया गया, वे वर्षों से यहां रह रहे थे, काम कर रहे थे और कुछ तो पहचान पत्रों के साथ स्थानीय मजदूर के रूप में पंजीकृत तक हो चुके थे। ऐसे में अब यह चर्चा तेज हो गई है कि आखिर ये लोग भारत में दाख़िल कैसे हुए, किन रास्तों से होते हुए मध्यप्रदेश के इस औद्योगिक क्षेत्र तक पहुंचे और इतने साल तक बिना किसी संदेह के कैसे रह रहे थे?
स्थानीय सूत्रों की मानें तो कुछ विदेशियों के पास आधार कार्ड, राशन कार्ड और मज़दूर रजिस्ट्रेशन तक उपलब्ध थे। यह स्थिति फर्जी दस्तावेज़ बनाने वाले नेटवर्क, स्थानीय दलालों, और कुछ श्रमिक ठेकेदारों की मिलीभगत की ओर इशारा करती है। अब यह एक साधारण अवैध प्रवास का मामला नहीं रह गया है, बल्कि एक बड़े संगठित तंत्र की आहट देने लगा है। विशेष एजेंसियों को संदेह है कि पीथमपुर, इंदौर और धार जैसे औद्योगिक इलाकों में अभी भी कई विदेशी नागरिक छिपे हो सकते हैं, जिनके पास फर्जी पहचान है और वे सामान्य नागरिकों की तरह रह रहे हैं। इस पूरे मामले के सामने आने के बाद अब स्थानीय प्रशासन अलर्ट मोड में है। हालांकि यह सवाल अब भी खुला है कि क्या इतनी बड़ी संख्या में विदेशियों के रहने, काम करने और दस्तावेज़ बनवाने की प्रक्रिया अकेले संभव थी या इसके पीछे एक लंबा संगठित चैनल सक्रिय है?