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देपालपुर में नकदी संकट की बड़ी तस्वीर : बैंकों में नहीं मिल रही ₹10 और ₹20 की फ्रेश गड्डीब्लैक मार्केट में महंगे दामों पर बेचा जा रहा कड़क नोट

जीवन खरीवाल, देपालपुर

देपालपुर क्षेत्र में नकदी संकट गहराता जा रहा है। बैंकों में ₹10 और ₹20 के नए नोटों की भारी कमी है, जबकि बाजार में यही नोट ऊंचे दामों पर खुलेआम बिक रहे हैं। इस स्थिति ने न केवल आम जनता को आर्थिक रूप से परेशान किया है, बल्कि बैंकिंग प्रणाली की पारदर्शिता और प्रशासनिक निगरानी पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्राहकों का कहना है कि जब वे बैंकों से नई गड्डियां लेने पहुंचते हैं, तो बैंक प्रबंधक और कर्मचारी यह कहकर टाल देते हैं कि “दिवाली के बाद से ताज़े नोटों की आपूर्ति नहीं हुई है। लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर बैंकों में नई गड्डियां नहीं आ रही हैं, तो बाजार में ब्लैक में इतनी बड़ी मात्रा में ये नोट कैसे उपलब्ध हो रहे हैं..?

महंगे दामों पर बिक रही है नकदी

पड़ताल में सामने आया है कि देपालपुर के बाजारों में ₹10 की गड्डी ₹1500 से ₹1700 और ₹20 की गड्डी ₹2500 से ₹2800 में बेची जा रही है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से ब्लैक मार्केटिंग और नकदी माफिया के सक्रिय नेटवर्क की ओर इशारा करती है। सोशल मीडिया पर भी कुछ लोग नई गड्डियों की तस्वीरें डालकर खुल्लम-खुल्ला यह प्रचार कर रहे हैं कि “कड़क नोट चाहिए तो हमसे संपर्क करें।” इससे साफ होता है कि नोटों की कालाबाजारी का यह खेल केवल स्थानीय दुकानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी सक्रिय है।

क्या बैंक कर्मी ही बने हैं ब्लैक मार्केटिंग के सूत्रधार ?

इस गंभीर स्थिति ने बैंकों की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। आम जनता का आरोप है कि जिन लोगों की बैंक कर्मचारियों से ‘सेटिंग’ है, उन्हें आसानी से ताज़े नोट उपलब्ध हो जाते हैं, जबकि बाकी लोगों को “नोट खत्म हो गए हैं” जैसे जवाब देकर लौटा दिया जाता है। कई बैंक प्रबंधकों और कर्मचारियों की भूमिका पर शक जताया जा रहा है कि कहीं यह सारा खेल अंदरूनी मिलीभगत का परिणाम तो नहीं..? क्योंकि जब तक बैंक के भीतर से सहयोग न मिले, इतनी बड़ी मात्रा में नई गड्डियां बाजार में कैसे पहुंच सकती हैं..?

रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, बैंकों को ग्राहकों को उचित मात्रा में नए नोट उपलब्ध कराने होते हैं। नोटों के वितरण में पारदर्शिता और निष्पक्षता अनिवार्य है। किसी भी प्रकार की अनियमितता या पक्षपात करने पर बैंकिंग नियामक सख्त कार्रवाई कर सकता है। आरबीआई के मापदंडों के अनुसार बैंकों को नियमित रूप से ताज़े नोटों की आपूर्ति करनी होती है।

प्रशासनिक उदासीनता या मिलीभगत..?

इस मामले में प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। आखिर, जब यह गतिविधि खुलेआम बाजार और सोशल मीडिया पर चल रही है, तो प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया? क्या यह लापरवाही है या फिर प्रशासनिक स्तर पर भी कहीं न कहीं मिलीभगत है..? स्थानीय प्रशासन और पुलिस विभाग को चाहिए कि वें इस मामले की गंभीरता से जांच करें और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। यदि बैंक कर्मियों की संलिप्तता पाई जाती है, तो उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए।

आम जनता के लिए संकट, कुछ लोगों के लिए अवसर

जहां एक ओर आम जनता को छोटे-मोटे लेन-देन के लिए भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं कुछ लोग इस संकट को अपने फायदे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। छोटे दुकानदार, ऑटो चालक, सब्जी विक्रेता और मजदूर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हैं। एक स्थानीय व्यापारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, हमें बैंक से गड्डी लेने के लिए घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है, और अंत में जवाब मिलता है कि नोट खत्म हो गए हैं। लेकिन वही गड्डी बाजार में महंगे दामों पर बिक रही है। आखिर ये गड्डी कहां से आ रही है..?

आर्थिक विशेषज्ञों की राय

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस समस्या पर तुरंत अंकुश नहीं लगाया गया तो यह नकदी संकट, अवैध लेन-देन, और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक डॉ. अनिल शर्मा का कहना है, यह सिर्फ एक स्थानीय समस्या नहीं है। अगर बैंकिंग प्रणाली में ऐसे खेल चल रहे हैं, तो यह पूरे वित्तीय ढांचे के लिए खतरे की घंटी है।

आम जनता से अपील

यदि आपको इस प्रकार की किसी भी ब्लैक मार्केटिंग, अवैध लेन-देन या संदिग्ध गतिविधि की जानकारी हो तो तुरंत संबंधित बैंक प्रबंधक, पुलिस प्रशासन या भारतीय रिजर्व बैंक की हेल्पलाइन पर इसकी सूचना दें। आरबीआई शिकायत हेल्पलाइन 14440, स्थानीय पुलिस कंट्रोल रूम (स्थानीय नंबर 917587614089)

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