देपालपुर। नगर के खटवाड़ी रोड पर बसी अवैध कॉलोनी के खिलाफ हुए बड़े खुलासे के बाद अब तक की सबसे सनसनीखेज सच्चाई सामने आई है शासन का ही कर्मचारी, शासन को पहुंचा रहा है करोड़ों की राजस्व हानि। आरोप है नगर परिषद की राजस्व शाखा का प्रभारी योगेश सोलंकी इस पूरे प्रकरण में ‘ब्रह्मास्त्र’ बनकर दोषियों पर गिरने की बजाय खुद भ्रष्टाचार का कवच बन गया है। जिस अधिकारी पर शासन के जलकर, भवनकर, भूमिकर जैसे विविध करों की वसूली कर उन्हें शासन के खाते में जमा कराने की जिम्मेदारी है, वही अधिकारी अब इस सुनियोजित घोटाले का संरक्षक बन चुका है

शिकायतकर्ता जीवन डोडिया की शिकायत और निर्माण शाखा के जांच अधिकारी नीरज गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार कॉलोनी पूरी तरह अवैध है। कृषि भूमि को अवैध रूप से प्लॉटिंग कर करोड़ों की जमीनें बेची गईं। न रेरा की मंजूरी, न टीएनसीपी की स्वीकृति, न ही नगर परिषद में पंजीयन. पूरी व्यवस्था को अंगूठा दिखाकर कॉलोनाइजर सूर्यप्रकाश नागर ने निर्माण कर दिया और अब तक 16 से अधिक मकान खड़े हो गए। लेकिन हैरानी की बात यह नहीं, बल्कि यह है कि जांच रिपोर्ट दो महीने से राजस्व शाखा की फाइलों में धूल खा रही है।
सीएमओ के निर्देश पर इंजीनियर गुप्ता ने जो रिपोर्ट सौंपी, वह अब तक राजस्व प्रभारी योगेश सोलंकी द्वारा दबाकर रखी गई है. क्यों? किसके कहने पर? किस दबाव में? जवाब किसी के पास नहीं। सूत्र कहते हैं कि सोलंकी पर ऊपर से भारी दबाव है। लेकिन सवाल ये है कि जब जनता का पैसा दांव पर है, जब शासन को करोड़ों की चपत लग रही है, तब यह कौन-सी सेवा है जहां ‘रक्षक ही भक्षक’ बन जाए।
शासन को जलकर, भवनकर, भूमिकर व अन्य टैक्स से लाभ पहुंचाना एक राजस्व अधिकारी का मूल कर्तव्य है, लेकिन योगेश सोलंकी जैसे अफसर इस कर्तव्य को खुलेआम रौंदते जा रहे हैं। प्लॉटिंग की गई भूमि पर न कोई डायवर्सन टैक्स वसूला गया, न विकास उपकर, न पंचायत ड्यूटी, न अन्य वैधानिक शुल्क! यानी सरकार को खुली लूट, प्रशासन का मौन समर्थन और दोषियों का निर्भीक नाटक!
इसी बीच कार्रवाई को रोकने के लिए छोटे स्तर का एक छूटभैय्ये नेता हरसंभव प्रयास कर रहा है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो यह नेता एसडीएम राकेश मोहन त्रिपाठी और तहसीलदार लोकेश आहूजा पर दबाव बनाकर पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश कर रहा है। यही कारण है कि प्रशासनिक स्तर पर निष्क्रियता देखने को मिल रही है। और दोषी खुलेआम घूम रहे हैं।

शिकायतकर्ता ने जब इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह की जनसुनवाई में दो बार दस्तक दी, तब भी कार्रवाई ठंडी पड़ी रही। क्या सरकार की जनसुनवाई अब सिर्फ दिखावा बनकर रह गई है? क्या ब्रह्मास्त्र की शक्ति अब सिर्फ पोस्टर और भाषणों तक सीमित रह गई है? देपालपुर का यह मामला न सिर्फ एक कॉलोनी घोटाले का पर्दाफाश है, बल्कि यह प्रशासन की आत्मा पर लगे दाग का प्रतीक बन चुका है।
अब सवाल यह नहीं कि कार्रवाई होगी या नहीं, बल्कि सवाल यह है कि क्या इस व्यवस्था में अब भी कोई ऐसा ईमानदार तंत्र बचा है जो ब्रह्मास्त्र की तरह न्याय का प्रहार कर सके? क्या दोषियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराएं 420, 406, 467, 468, 471 और नगर पालिका अधिनियम की धारा 292(ए), 292(बी) लगाकर कड़ी सजा दी जाएगी या फिर यह मामला भी किसी और घोटाले की तरह फाइलों में सड़ता रहेगा।